बोलो बेटे अर्जुन! सामने क्या देखते हो तुम? संसद? सेक्रेटेरिएट? मंत्रालय? या मंच?? अर्जुन बोला तुरंत-- गुरुदेव! मुझे सिवा कुर्सी के कुछ भी नजर नहीं आता । पुलकित गुरु बोले द्रोण-- हे धनंजय! तुम मंत्री पद वरोगे काम कुछ भी नहीं करोगे/ फिर भी धन से घर भरोगे केवल कुर्सी के लिए जिओगे । और कुर्सी के लिए ही मरोगे ।
-मनमोहन झा
[ लगभग जीवन, संपादक- लीलाधर जगूड़ी सूर्य प्रकाशन मन्दिर, बीकानेर ]
|